चिंता से चतुराई घटे, दु:ख से घटे शरीर।
पा किये लक्ष्मी घटे, कह गये दास कबीर।।
यह दोहा संत कबीरदास के द्वारा दिया गया है और इसका गहरा अर्थ है। इसका सार इस प्रकार है:
चिंता करने से व्यक्ति की चतुराई और उसकी बुद्धिमत्ता घट जाती है। दुख से शरीर कमजोर हो जाता है।
जब व्यक्ति धन (लक्ष्मी) प्राप्त करता है, तो अक्सर उसके विनम्रता, धैर्य और संतोष घटने लगते हैं।
कबीरदास जी इस दोहे के माध्यम से यह संदेश दे रहे हैं कि चिंता, दुख, और धन तीनों ही किसी न किसी रूप में व्यक्ति को कमजोर बनाते हैं। इसलिए, संतुलित जीवन जीना और अधिक ध्यान चिंता या धन पर नहीं, बल्कि संतोष और आत्मिक शांति पर देना चाहिए।
कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय।
भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरन कुल खोय।।
चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए।
वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा खवाय॥
यह दोहा संत कबीरदास का है, जिसमें उन्होंने चिंता की हानियों को बहुत ही सरल और प्रभावशाली तरीके से व्यक्त किया है।
दोहा का अर्थ है:
चिंता एक ऐसी डाकिनी (चुड़ैल) है जो इंसान के हृदय (करेजा) को काट-काट कर खाती रहती है। इसका प्रभाव इतना गहरा होता है कि किसी वैद्य (डॉक्टर) के लिए इसे ठीक करना बहुत मुश्किल हो जाता है, क्योंकि चिंता का इलाज केवल दवाओं से नहीं किया जा सकता।
कबीरदास इस दोहे में यह संदेश देते हैं कि चिंता मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को बुरी तरह प्रभावित करती है, और इसका कोई बाहरी इलाज संभव नहीं है। इसका समाधान व्यक्ति के अपने भीतर है — चिंता को त्याग कर, संतुलित और शांत जीवन जीने में।
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