"काग दही पर जान गँवायो" एक लोक कहावत है, जो अपनी साधारण भाषा में एक गहरा और व्यावहारिक संदेश देती है। इसका अर्थ और भावार्थ मानवीय स्वभाव और जीवन की मूर्खतापूर्ण आदतों को उजागर करता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
शाब्दिक अर्थ:
- काग: कौआ, जिसे भारतीय संस्कृति में चतुर और चालाक माना जाता है।
- दही: दूध से बनी एक पोषक वस्तु।
- जान गँवायो: अपने प्राण खो देना।
अर्थ: कौए ने दही को प्राप्त करने के चक्कर में अपनी जान गँवा दी।
भावार्थ:
यह कहावत हमें सिखाती है कि:
अति लोभ घातक है:
- किसी भी वस्तु के प्रति अत्यधिक लालसा (जैसे कौए का दही पाने का प्रयास) व्यक्ति के लिए घातक हो सकती है।
- लोभ और लालच से प्रेरित कार्य अक्सर विनाशकारी होते हैं।
मूर्खता से बचना:
- कौए का दही पाने का प्रयास उसकी मूर्खता को दर्शाता है। कई बार हम भी अनावश्यक और तुच्छ चीजों के पीछे भागते हैं, जिससे हमारी ऊर्जा और समय बर्बाद होता है।
लालच का परिणाम:
- लालच के कारण अक्सर हम अपनी महत्वपूर्ण चीजों (जैसे समय, संबंध, या जीवन) को दांव पर लगा देते हैं।
एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।
इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।
– ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी।
“काग दही पर जान गँवायो”
– तभी वहां एक लेखपाल महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी हैं ! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा –
“कागद ही पर जान गंवायो”
– तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी हैं। काश उसे ये पहले पता होतीं, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था –
“का गदही पर जान गंवायो”
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इसीलिए संत तुलसीदासजी ने बहुत पहले ही लिख दिया था –
“जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!