Tuesday, 26 November 2024

खत

 खत शब्द के कई मतलब हो सकते हैं: 

खत का मतलब पत्र या चिट्ठी होता है. 

खत का मतलब आघात, प्रहार, घाव, या चोट भी होता है. 

खत का मतलब दो चीज़ों के टकराने या किसी कड़ी चीज़ के टूटने से उत्पन्न शब्द भी होता है. 

खत का मतलब किसी चीज़ के गिरने या टूटने से उत्पन्न ध्वनि या शब्द भी होता है. 

खत का मतलब ठोकने-पीटने से पैदा होने वाली आवाज़ भी होता है. 

Monday, 25 November 2024

तू इस मन का दास ना बन

 



मन के बहकावे में ना आ

मन राह भुलाये भ्रह्म में डाले,
तू इस मन का दास ना बन,
इस मन को अपना दास बनाले,


https://bhajanganga.com/bhajan/lyrics/id/31634/title/Man-ke-bahkave-me-na-aa

Tuesday, 19 November 2024

Sanatan Dharma

 

  • Sanatan Dharma is based on a vast body of scriptures, including:
    • The Vedas (Rigveda, Yajurveda, Samaveda, Atharvaveda)
    • The Upanishads (philosophical texts exploring spiritual knowledge)
    • The Bhagavad Gita (a dialogue on dharma and righteousness)
    • The Ramayana and Mahabharata (epics illustrating dharma)
    • The Puranas (mythological and historical stories)


Synonyms for Sanatan:

  1. Eternal
  2. Timeless
  3. Perpetual
  4. Unchanging
  5. Everlasting
  6. Infinite
  7. Ageless
  8. Primordial
  9. Ancient
  10. Universal

Synonyms for Sanatan Dharma:

  1. Eternal Law
  2. Eternal Order
  3. Universal Religion
  4. Primordial Tradition
  5. Timeless Path
  6. Vedic Dharma
  7. Hindu Dharma (often used interchangeably, though Sanatan Dharma has a broader meaning)
  8. Righteous Path
  9. Cosmic Law
  10. Ancient Wisdom

"कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा॥"

 यह पंक्ति हमें सिखाती है कि जीवन में भगवान के नाम का स्मरण करना ही सच्ची भक्ति और मोक्ष का मार्ग है। यह जीवन को पवित्र, शांतिपूर्ण, और सशक्त बनाता है। नाम जप से आत्मा और परमात्मा का मिलन संभव है, और यही जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। 🙏



पंक्तियों का अर्थ:

  1. "कलियुग केवल नाम अधारा":

    • अर्थ: इस कलियुग (वर्तमान युग) में केवल भगवान के नाम का स्मरण (जप) ही मोक्ष और भक्ति का आधार है।
    • भावार्थ: यह युग धर्म-कर्म की जटिल विधियों का पालन करने के लिए कठिन है। ध्यान, यज्ञ, और तप की जगह अब केवल भगवान के नाम का सुमिरन ही जीवन को पवित्र और मुक्त करने का मार्ग है।
  2. "सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा":

    • अर्थ: भगवान के नाम का बार-बार स्मरण (सुमिरन) करने से मनुष्य संसार-सागर से पार हो सकता है।
    • भावार्थ: यह संसार एक कठिन सागर की तरह है, जिसमें दुख, मोह, और माया के बंधन हैं। भगवान का नाम स्मरण वह नाव है, जो इस सागर से पार ले जाती है।

"काग दही पर जान गँवायो"

 "काग दही पर जान गँवायो" एक लोक कहावत है, जो अपनी साधारण भाषा में एक गहरा और व्यावहारिक संदेश देती है। इसका अर्थ और भावार्थ मानवीय स्वभाव और जीवन की मूर्खतापूर्ण आदतों को उजागर करता है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:


शाब्दिक अर्थ:

  • काग: कौआ, जिसे भारतीय संस्कृति में चतुर और चालाक माना जाता है।
  • दही: दूध से बनी एक पोषक वस्तु।
  • जान गँवायो: अपने प्राण खो देना।

अर्थ: कौए ने दही को प्राप्त करने के चक्कर में अपनी जान गँवा दी।


भावार्थ:

यह कहावत हमें सिखाती है कि:

  1. अति लोभ घातक है:

    • किसी भी वस्तु के प्रति अत्यधिक लालसा (जैसे कौए का दही पाने का प्रयास) व्यक्ति के लिए घातक हो सकती है।
    • लोभ और लालच से प्रेरित कार्य अक्सर विनाशकारी होते हैं।
  2. मूर्खता से बचना:

    • कौए का दही पाने का प्रयास उसकी मूर्खता को दर्शाता है। कई बार हम भी अनावश्यक और तुच्छ चीजों के पीछे भागते हैं, जिससे हमारी ऊर्जा और समय बर्बाद होता है।
  3. लालच का परिणाम:

    • लालच के कारण अक्सर हम अपनी महत्वपूर्ण चीजों (जैसे समय, संबंध, या जीवन) को दांव पर लगा देते हैं।






एक बार एक कवि हलवाई की दुकान पहुंचे, जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।

इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।

– ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी।

“काग दही पर जान गँवायो”

– तभी वहां एक लेखपाल महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी हैं ! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा –

“कागद ही पर जान गंवायो”

– तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी हैं। काश उसे ये पहले पता होतीं, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था –

“का गदही पर जान गंवायो”
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इसीलिए संत तुलसीदासजी ने बहुत पहले ही लिख दिया था –

“जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!